व्याकरण (Grammar)
1.1 परिभाषा
व्याकरण ओहि शास्त्रकेँ कहल जाइत अछि जाहिमे भाषा शुद्ध करबाक नियम बनाओल गेल हो। कोनो भाषाक अंग-प्रत्यंगक विश्लेषण तथा विषेचन व्याकरण कहबैछ। व्याकरण ओ विधा थिक, जकरा द्वारा कोनो भाषा शुद्ध शुद्ध बाजल, पड़ल आ' लिखल जाइत अछि। एहिमे कोनो भाषाक पढ़बाक, लिखबाक आ' बजबाक निश्चित नियम होइत अछि। भाषाक शुद्धता आ' सुन्दरताक लेल व्याकरणक नियमक पालन करव आवश्यक तेँ व्याकरण भाषा अध्ययनक महत्त्वपूर्ण अंग थिक ।
व्याकरण ओ विधा थिक, जकरा अन्तर्गत लोक आ' साहित्यमे प्रयुक्त भाषाक स्वरूप, ओकर गठन तथा प्रकार, ओहिमे परस्पर सम्बन्ध आ रचना विधान एवं रूप परिवर्तनक विवेचन कएल जाइत अछि। अर्थात् भाषा संबंधी नियमसँ सम्बद्ध पोथीक नाम व्याकरण थिक । दोसर शब्दमे, जाहि शास्त्रमे शब्दक शुद्ध रूप आ' प्रयोगादिक नियमक निरूपण होइछ, ओकरा व्याकरण कहल जाइत अछि। अतः मैथिली व्याकरण ओ भेल जाहिसँ मैथिली भाषा शुद्ध शुद्ध बाजल, लिखल आ पड़ल जा सकैछ।
व्याकरणक 'शब्दानुशासन' सेहो कहल जाइत अछि, जे कोनो भाषाक शब्द सम्बन्धी अनुशासन करैत अछि जाहिसँ ई बोध होइत अछि, जे कोन शब्दक कोन तरहँ प्रयोग होमक चाही। भाषामे शब्दक प्रवृत्ति अपनहि रहेछ, व्याकरणक कहलासँ शब्द नहि चलैत अछि। मुदा, भाषाक प्रवृत्तिक अनुसार व्याकरण शब्द प्रयोगक निर्देश दैत अछि। व्याकरण भाषापर शासन नहि करैत अछि, ओकर स्थिति प्रवृत्तिक अनुसार लोकलक्षण करैत अछि आ ' भाषा जेना चलैत अछि तकरा वैयाकरणलोकनि ओकर प्रवृत्तिक आधारपर नियमबद्ध क' दैत छथि, जे 'व्याकरणशास्त्र' कहबैत अछि।
स्रोत: मैथिली भाषाविज्ञान (डॉ. विजयेन्द्र झा)
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